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महाकाल मंदिर गर्भगृह विवाद हाईकोर्ट पहुंचा: महापौर की सलाह पर इंदौर निवासी ने दायर की जनहित याचिका, याचिकाकर्ता बोले– सभी भक्तों को मिले समान अधिकार!
उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
उज्जैन का श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग विश्व प्रसिद्ध मंदिर है, जहां हर दिन हजारों श्रद्धालु बाबा महाकाल के दर्शन करने पहुंचते हैं। लेकिन बीते एक वर्ष से आम भक्तों के लिए गर्भगृह (जहां शिवलिंग स्थित है) का प्रवेश बंद है। वहीं दूसरी ओर नेताओं, अधिकारियों और प्रभावशाली लोगों के गर्भगृह में प्रवेश और विशेष पूजा के मामले लगातार सामने आते रहे हैं। इसी असमानता के खिलाफ अब यह मामला इंदौर हाईकोर्ट की दहलीज तक पहुंच गया है।
हाईकोर्ट में दाखिल हुई जनहित याचिका
इंदौर निवासी दर्पण अवस्थी ने एडवोकेट चर्चित शास्त्री के माध्यम से जनहित याचिका दाखिल की है। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि दूर-दराज़ से आने वाले लाखों भक्त बाहर से ही दर्शन करने को मजबूर हैं, जबकि नेताओं और वीआईपी को गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति मिल जाती है।
गुरुवार को हाईकोर्ट की युगलपीठ ने इस मामले पर सुनवाई की। इसमें मध्यप्रदेश सरकार, महाकालेश्वर मंदिर प्रबंधन समिति, उज्जैन कलेक्टर और एसपी को पक्षकार बनाया गया है। कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया है।
याचिका में रखी गई मांगें
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वीआईपी और नेताओं को विशेष छूट देकर गर्भगृह में प्रवेश न दिया जाए।
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ऐसी नीति बनाई जाए, जिससे आम श्रद्धालु भी गर्भगृह में जाकर बाबा महाकाल का स्पर्श दर्शन कर सकें।
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यदि आवश्यक हो तो इसके लिए शुल्क निर्धारित किया जाए, ताकि सभी भक्त समान रूप से लाभ उठा सकें।
क्यों खड़ा हुआ विवाद?
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4 जुलाई 2023 को सावन महीने की भीड़ को देखते हुए मंदिर समिति ने 11 सितंबर 2023 तक गर्भगृह बंद कर दिया था।
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समिति ने आश्वासन दिया था कि सावन खत्म होते ही गर्भगृह खोल दिया जाएगा।
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लेकिन एक वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद भी गर्भगृह आम श्रद्धालुओं के लिए नहीं खोला गया।
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इस बीच कई नेताओं और वीआईपी के प्रवेश की घटनाएं सामने आईं, जिससे आम भक्तों में असंतोष और आक्रोश फैला।
महापौर की सलाह के बाद कोर्ट पहुंचे याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ता दर्पण अवस्थी ने बताया कि वे महाकाल मंदिर गए थे, जहां उन्होंने देखा कि आम भक्त पीछे से दर्शन कर रहे हैं, जबकि वीआईपी लोग गर्भगृह से विशेष दर्शन कर रहे थे। उन्होंने इस घटना का वीडियो बनाया और शेयर किया, जिसे लाखों लोगों ने देखा।
इसके बाद उन्होंने राजनीतिक हस्तियों से संपर्क किया, लेकिन मदद नहीं मिली। अंततः इंदौर महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने उन्हें सलाह दी कि इस मामले को हाईकोर्ट में उठाया जाए।